मैं दिल्ली जंक्शन हूं… बंटवारे के बाद, मैंने ट्रेन से उतरते रोते-बिलखते मिल्खा सिंह को देखा था

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Punjab Junction Weekly Newspaper / 08 August 2022

देश के बंटवारे का जिक्र होगा तो फिर दिल्ली जंक्शन की बात तो करनी ही पड़ेगी। दिल्ली में गुजरे 75 सालों में दर्जनों फ्लाईओवर बने, मेट्रो रेल चलने लगी, जगह-जगह मॉल्स खुलते रहे। पर दिल्ली जंक्शन कमोबेश जैसा 1947 के समय था, वैसा ही अब भी है। दिल्ली जंक्शन को पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन भी कहा जाता है। दिल्ली जंक्शन के मेन गेट के ऊपर लगी घड़ी गवाह है उस दौर की जब यहां पर पाकिस्तान से रोज हिन्दू- सिख शरणार्थी लुट-पिट कर आ रहे थे। दिल्ली में आपको अब भी अपने संध्याकाल में पहुंच चुके झुकी हुई कमर वाले वे बुजुर्ग मिल जायेंगे जो बंटवारे के बाद किसी तरह से जान बचाकर इसी रेलवे स्टेशन पर उतरे थे। यहां पर रेलों और मुसाफिरों के कभी ना रुकने वाला सिलसिला जारी है।

पाकिस्तान से दिल्ली आने वाले अधिकतर शरणार्थियों का इधर कोई घर-बार नहीं था। ये सब भगवान का नाम लेकर भारत की सीमा में पहुंच जाना चाहते थे। उससे पहले खतरा था। दिल्ली की तरफ आ रही रेलों पर निर्जन स्थानों पर हमले हो रहे थे। वसंत कुंज में रहने वाले रेलवे बोर्ड के चेयरमेन रहे वाई.पी.आनंद अपने परिवार के साथ स्यालकोट से जम्मू का 21 किलोमीटर का सफर कर रहे थे। स्यालकोट में दंगे भड़कने के बाद उनके परिवार के लिए वहां पर रहना नामुमकिन हो चुका था। वे तब 13 साल के थे। उन्हें याद है जब किसी अनजान स्थान पर रेल को रोक दिया गया था। देखते-देखते उसमें हथियारों के साथ मौत के सौदागर दाखिल हो गए थे। उन्होंने उस अभागी रेल में सवार दर्जनों यात्रियों का कत्ल कर दिया। आनंद जी के सामने उनके परिवार के आधे सदस्य मारे गए थे। वे उन भयावह पलों को सुनाते हुए रोने लगते हैं। उनकी खून से लथपथ रेल जम्मू पहुंची। वहां से कुछ दिनों के बाद वे अपने परिवार के बचे-खुचे सदस्यों के साथ दिल्ली जंक्शन आते हैं। यहां पर स्टेशन के आसपास हजारों शरणार्थी डेरा जमाये हुए थे।

सिर्फ 16 साल की उम्र में उड़न सिख मिल्खा सिंह अकेले-अनाथ दिल्ली जंक्शन पर उतरे थे। मिल्खा सिंह के परिवार के कई सदस्यों का कत्ल कर दिया गया था। मिल्खा सिंह सीधे सरहद के उस पार से दिल्ली नहीं आये थे। वे पहले पश्चिमी पंजाब के अपने शहर कोट अद्दू से मुल्तान शहर रेल से पहुंचे थे। वहां से वे ट्रक पर फिरोजपुर आये थे। उनकी बंटवारे को लेकर बेहद दिल दहलाने वाली यादें थीं। उनके पिता का दंगाइयों ने कत्ल कर दिया था। उन्होंने मरते वक्त कहा था, ‘भाग मिल्खा भाग।’ फिरोजपुर से वे दिल्ली आये थे। दरअसल वे अपने गांव से जान बचाकर भागने के दौरान अपनी बहन से बिछड़ गये थे। शरीर सुन्न होने लगता था जब मिल्खा सिंह उस दौर के दर्दनाक किस्से बयां करते थे। दिल्ली में शरणार्थियों के जत्थे आ रहे थे। सब तरफ अफरा-तफरी का आलम था। मिल्खा सिंह अपनी बिछड़ गई बहन हुंडी को खोजने के लिए दिल्ली आये थे। हां, वे दिल्ली में अपनी बहन को तलाशने में सफल रहे थे।

Chief Editor- Jasdeep Singh  (National Award Winner)