सोनिया के हटने से कांग्रेस के गढ़ में बदलेगा रण? मोदी लहर में भी नहीं ढह पाया मजबूत किला

Punjab Junction Weekly Newspaper / 29 MARCH 2024

रायबरेली: उत्तर प्रदेश का रायबरेली जिला कई मायनों में राजनीतिक रूप से काफी महत्वपर्ण है। जिले की सरकारी वेबसाइट बताती है कि रायबरेली को भरों ने स्थापित किया था, इसलिए इसका नाम पहले भरौली या बरौली था, बाद में बरेली हो गया। आगे लगे ‘राय’ का रिश्ता कायस्थों से जोड़ा जाता है जो कुछ समय के लिए यहां काबिज थे। हालांकि, सियासत में तनिक दिलचस्पी रखने वाला भी इस क्षेत्र को जरूर जानता है, क्योंकि यह कांग्रेस के गांधी परिवार का गढ़ रहा है। यूपी का यह लोकसभा क्षेत्र 2014 और 2019 के मोदी लहर में भी नहीं डगमगाया। 2019 में तो पड़ोसी लोकसभा सीट अमेठी से राहुल गांधी हारे, लेकिन सोनिया गांधी रायबरेली पर काबिज होने में कामयाब रहीं। हालांकि, सोनिया गांधी के इस बार चुनाव से हटने से रण का समीकरण बदला नजर आ रहा है।

उपचुनावों को जोड़ लें तो रायबरेली में अब तक कुल 20 संसदीय चुनाव हुए हैं, जिसमें 17 बार कांग्रेस को जीत मिली है। एक बार जनता पार्टी व दो बार भाजपा के खाते में सीट आई है। 90 के दशक में सपा भी दो बार लड़ाई में आई, लेकिन जीत नहीं पाई। 2009 से उसने गांधी परिवार के समर्थन में उम्मीदवार उतारना बंद कर दिया। बसपा यहां जरूर लड़ती रही है। 2009 में वह दूसरे नंबर पर जरूर थी, लेकिन लड़ाई में कभी नहीं रही।

फिरोज का आगाज, इंदिरा की अगुआई

आजादी के बाद हुए पहले चुनाव में यह सीट रायबरेली-प्रतापगढ़ के नाम से जानी जाती थी। नेहरू के दामाद और इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी ने यहां से पर्चा भरा। इंदिरा तब कांग्रेस की राजनीति में हाथ बंटाने लगी थीं। पति के प्रचार के लिए वह भी रायबरेली पहुंचीं। फिरोज आसानी से चुनाव जीत गए और उन्होंने अगले दो चुनाव जीतकर हैटट्रिक लगाई। 1960 में जीत के बाद उनका निधन हो गया। उपचुनाव में आरपी सिंह ने उनकी जगह ली। 62 में भी जीत कांग्रेस के ही खाते में रही। लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद इंदिरा पीएम बनीं। चुनाव मैदान में उनका उतरना लाजिमी था। 1967 में उन्होंने पति की सीट रायबरेली को चुना और रायबरेली ने उन्हें।

जब राजनारायण ने पलट दी कुर्सी

देश की राजनीति और वैश्विक कूटनीति में इंदिरा का कद आसमान तक पहुंच चुका था। सफलता के इस उत्साह में इंदिरा ने ऐसी चूक कर दी जो भारतीय लोकतंत्र में काले अध्याय के तौर पर जानी जाती है। 1975 में इंदिरा ने इमरजेंसी लगा दी। इसके बाद 77 का चुनाव हुआ तो जेपी की अगुआई में पूरे देश में ‘इंदिरा हटाओ’ का नारा गूंज रहा था। इसने 25 साल से अभेद्य रहा रायबरेली का किला भी तोड़ दिया। इंदिरा गांधी को कोर्ट में हराने वाले राजनारायण यहां भी जीत गए और इंदिरा हार गई।

1971 में इसी सीट से राजनारायण को हार मिली थी। हालांकि, गुबार निकालने के बाद रायबरेली फिर कांग्रेस के साथ हो गया। 80 में यहां इंदिरा को जीत मिली, लेकिन उन्होंने रायबरेली की जगह आंध्र प्रदेश के मेडक से नुमाइंदगी का फैसला किया। उपचुनाव व उसके बाद 84 के आम चुनाव में उनकी विरासत अरुण नेहरू ने संभाली। 89 और 91 में इंदिरा की मामी शीला कौल ने कांग्रेस के टिकट पर रायबरेली का प्रतिनिधित्व किया।

शीला कौल के बेटे-बेटी की जमानत जब्त

90 का दशक कांग्रेस के लिए खराब दौर की पटकथा लिखने लगा था। 91 में चुनाव के बीच राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के सिर से गांधी परिवार की छांव हट गई। राहुल और प्रियंका छोटे थे और सोनिया गांधी राजनीति से दूर। इस दौर में रायबरेली भी कांग्रेस से रूठ गई। 1996 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां शीला कौल के बेटे विक्रम कौल को उम्मीदवार बनाया लेकिन जीत मिली भाजपा के अशोक सिंह को। दूसरे नंबर पर जनता दल के अशोक सिंह रहे व तीसरे नंबर पर बसपा।

रायबरेली से 11 चुनाव जीतने वाली कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई। 98 में भी यही कहानी दोहराई गई। अशोक ने दोबारा कमल खिलाया। इस बार दूसरे-तीसरे पर सपा-बसपा रही। नेहरू के बेटी-दामाद को स्वीकारने वाले रायबरेली ने इस बार शीला की बेटी की जमानत जब्त करा दी।

रायबरेली लोकसभा सीट एक नजर में:

  • कुल वोटर : 21.22 लाख
  • पुरुष : 11.09 लाख
  • महिला : 10.13 लाख

 

सोनिया की वापसी और एकमत रायबरेली

कांग्रेस आखिरकार सोनिया को राजनीति में लाने में कामयाब हुई। 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष बनीं सोनिया ने 99 के चुनाव में अमेठी से पर्चा भरा। उसका असर बगल की सीट रायबरेली पर भी हुआ। कांग्रेस की हार का सिलसिला टूटा व कैप्टन सतीश शर्मा चुनाव जीते। कांग्रेस के टिकट पर दो बार चुनाव जीते अरुण नेहरू को भाजपा ने टिकट दिया था, लेकिन जनता ने उन्हें चौथे नंबर पर धकेल दिया। 2004 से सोनिया ने खुद रायबरेली की नुमाइंदगी का फैसला किया।

सोनिया पर रायबरेली हमेशा एकमत रहा और अब तक उन्होंने यहां एकतरफा जीत हासिल की है। 2006 में लाभ के पद मामले में फंसने के चलते सोनिया को इस्तीफा देना पड़ा था। तब हुए उपचुनाव में रायबरेली में उन्हें 80% वोट मिले थे। भाजपा ने यहां पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विनय कटियार को उतारा, लेकिन वह 20 हजार वोट भी नहीं हासिल कर सके।

Chief Editor- Jasdeep Singh ‘Sagar’ (National Award Winner)