Punjab Junction Weekly Newspaper / 18 December 2022
‘ब्लर’ की कहानी
एक म्यूजिशियन है गौतमी। वह देख नहीं सकती। गौतमी आत्महत्या कर लेती है। उसकी एक जुड़वा बहन है गायत्री, जिसे पक्का यकीन है कि गौतमी ने आत्महत्या नहीं की है। गायत्री दावा करती है कि उसकी बहन का कत्ल हुआ है। लेकिन वह न तो अपनी बहन के पति और न ही पुलिस को यह समझा पाती है। गायत्री अब अपने बूते बहन की मौत का सच पता लगाने के लिए जुटती है। उसे कुछ सुराग मिलते हैं। कुछ ऐसे सच का पर्दाफाश होता है, जो गायत्री की जिंदगी से जुड़े हैं। लेकिन इसी बीच गायत्री की आंखों की रोशनी भी जाने लगती है, ठीक उसी तरह जैसे उसकी बहन की गई थी। गायत्री को भी एहसास होने लगता है कि उसकी जिंदगी खतरे में हैं। अब क्या वह अपनी जिंदगी बचा पाएगी? क्या गायत्री अपनी बहन की मौत का सच दुनिया के सामने ला पाएगी? यह जानने के लिए आपको Blurr देखनी होगी।
‘ब्लर’ का रिव्यू
ओटीटी की दुनिया में साइकोलॉजिकल थ्रिलर की अच्छी खासी मांग है। अजय बहल के डायरेक्शन में बनी ‘ब्लर’ दर्शकों की दिमाग को झकझोर देने वाले रोमांच के खुराक को पूरा करती है। फिल्म की शुरुआत एक रात से होती है, जहां गौतमी (Taapsee Pannu) किसी से बहस कर रही है। लेकिन थोड़ी देर बाद ही आपको यह एहसास होता है कि गौतमी तो कमरे में अकेली है। इसके बाद अंधी गौतमी को हम फांसी लगाने की कोशिश करते हुए देखते हैं। फिर वहां कोई गौतमी के पैरों के नीचे लगे स्टूल को गिराता है। इस तरह कुछ गहरे रहस्य, सनकी किरदारों और गौतमी की जुड़वा बहन गायत्री (तापसी) की कहानी शुरू होती है। कहानी में गौतमी का पति नील (Gulshan Devaiah) भी है। साथ में हैं इस मौत की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी महेंद्र चंदेल (सुमित निझावन), जो केस को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं।
‘ब्लर’ का ट्रेलर
डायरेक्टर अजय बहल और सिनेमेटोग्राफर सुधीर चौधरी ने बड़ी काबिलियत से फिल्म को हॉरर ट्रीटमेंट दिया है। पहाड़ और कोहरे से सना माहौल इस काम में उनकी मदद करता है। बतौर दर्शक हम अनुमान लगाते रहते हैं कि कातिल कोई इंसान है या कुछ और। विक्टोरियन अंदाज में बना विला और अंधेरी गलियों के साथ आर्ट डायरेक्टर ने पर्दे पर एक भूतिया अंदाज जोड़ा है। फिल्म का फर्स्ट हाफ में जबरदस्त कसावट है और यह कई मौकों पर आपको डराता है। उदाहरण के लिए, एक डरावना सीन है जहां गायत्री अंधी महिलाओं के एक ग्रुप के साथ भागती है। वहां दर्शक भी एक अजनबी खतरे को महसूस करते हैं। केतन सोडा का बैकग्राउंड स्कोर इन सीन्स को और अधिक भयानक बना देता है।
फिल्म में वो सीन भी बहुत प्रभावी बने हैं, जहां प्रोग्रेसिव ब्लाइंडनेस के कारण हम गायत्री की आंखों की रोशनी कम होते हुए देखते हैं। तापसी ने इस सीन्स में बेहतरीन एक्टिंग की है। गुलशन देवैया, कृतिका देसाई खान, गौतमी की पड़ोसी राधा सोलंकी ने भी कहानी के साथ न्याय किया है। फिल्म में कई बाद परित्याग करने यानी छोड़ देने के थीम को दिखाया गया है। मसलन, गायत्री के नहीं होने के कारण नील खुद को उपेक्षित महसूस करता है, राधा के पति और बेटे ने उसे छोड़ दिया।
फिल्म के पहले भाग में आपको खुद को जितना रोमांचित महसूस करते हैं। डर और रोमांच का जो मिश्रण आपको पहले हाफ में दिखता है, वह सेकेंड हाफ तक आते-आते जैसे खत्म हो जाता है। फिल्म में हॉरर वाला पुट कहीं गायब हो जाता है। हालांकि, फिर भी यह फिल्म थ्रिलर और सस्पेंस को बनाए रखती है, जो आपको अंत तक स्क्रीन से बांधे रखेगी।
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Chief Editor- Jasdeep Singh (National Award Winner)