Punjab Junction Newspaper | 07 January 2022
अटल जी की पैदाइश भले लखनऊ की न रही हो लेकिन वह इस शहर के पांच बार सांसद रहे। शायद यही वजह रही कि नवाबों के शहर का अंदाज-ए-गुफ्तगू उनके भीतर भी रम गया था। अब जैसे लखनऊ की जुबान को लेकर एक बहुत प्रचलित किस्सा है कि एक घर में मेहमान पहुंचे। जो मेजबान थे, उन्होंने मेहमानों से जानना चाहा कि खाने में क्या बनवाया जाए, ‘बैंगन शरीफ का भरता खाना पसंद करेंगे या भिंडी मुबारक का सोरबा? वैसे पालक पाक भी घर में मौजूद है।’ जो मेहमान थे वह भी थे शुद्ध लखनवी। समझ गए कि जो मेजबान हैं, वह उन्हें सब्जियां खिलाकर टरकाना चाह रहे हैं, तुरंत नहले पर दहला जड़ दिया, बोले, ‘हम लोग ठहरे गुनहगार बंदे, इन मुकद्दस सब्जियों के नाम भी लेने के काबिल नहीं। आप ऐसा करें कि कोई बेगैरत, आवारा सा मुर्गा पका लें।’
‘शांता, तुम मुझे वह कागज दे ही दो’

खैर बात अटल जी की हो रही थी। यह 2003-04 के दरम्यान की बात है। केंद्र में अटल जी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार चल रही थी। उनकी कैबिनेट में शांता कुमार ग्रामीण विकास मंत्री थे। पार्टी के अंदर उनको लेकर कुछ पंगा हो गया था। तय हुआ कि इन्हें कैबिनेट से ड्रॉप किया जाएगा। जब उन्हें कैबिनेट से हटाया जाना तय हो गया था तो पीएमओ भी उनसे इस्तीफा देने को कह सकता था लेकिन अटल ने खुद शांता कुमार को फोन किया। उनके इस्तीफा मांगने का अंदाज लखनवी ही था।
उन्होंने इस्तीफे का नाम भी नहीं लिया और शांता कुमार को यह मैसेज कन्वे हो गया कि उनसे इस्तीफा मांगा जा रहा है। अटल ने शांता कुमार से कहा, ‘शांता, तुम मुझे वह कागज दे ही दो।’ शांता कुमार अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि उन्हें यह समझने में जरा भी देर नहीं लगी कि अटल जी उनसे इस्तीफा देने को कह रहे हैं। शांता कुमार घर से मंत्रालय पहुंचे, इस्तीफा तैयार किया और प्रधानमंत्री को सौंप आए।
‘हाफ पैंट’ में राजभवन पहुंच गए सीएस

टीएसआर सुब्रमणियन केंद्र में कैबिनेट सचिव रहे हैं। बहुत ही काबिल अफसरों में शुमार होते थे लेकिन बहुत ही अड़ियल भी माने जाते थे। मशहूर था कि उनका साथ लेने के लिए खुद में धैर्य की बहुत जरूरत है। उनके साथ टकराव के तमाम किस्से आज भी सत्ता के गलियारों में गर्मजोशी के साथ सुने और सुनाए जाते हैं। यह किस्सा 90 के दशक का है। केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और यूपी में राष्ट्रपति शासन लग गया था। केंद्र सरकार ने कांग्रेस के दिग्गज नेता मोतीलाल वोरा को यूपी का राज्यपाल बनाकर भेजा था। उसी दरम्यान टीएसआर सुब्रमणियन यूपी के चीफ सेक्रेटरी थे। उनके रूटीन में शामिल था सबेरे गोल्फ खेलना।
लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास के पास ही एक बड़ा सा गोल्फ मैदान है, वहीं वह गोल्फ खेलने जाया करते थे और ब्यूरोक्रेसी के लिए उनका एक स्टैंडिंग ऑर्डर था कि गोल्फ खेलने के दौरान उन्हें कतई डिस्टर्ब न किया जाए। एक सुबह राजभवन से उनके घर पर फोन गया कि राज्यपाल तुरंत उनसे मिलना चाहते हैं। राज्यपाल की बात थी, इस वजह से घर पर तैनात सरकारी कर्मी यह सूचना लेकर गोल्फ मैदान पहुंचे। वह दौर मोबाइल फोन का नहीं था। जब उन्हें यह बताया गया कि राज्यपाल ने उन्हें बुलाया है तो वह सूचना लेकर आए सरकारी कर्मी पर बरस पड़े कि क्या राज्यपाल को यह नहीं मालूम कि यह टाइम उनके गोल्फ खेलने का है? अपने गुस्से का इजहार करने को वह हाफ पैंट और गोल्फ किट लेकर ही राजभवन पहुंच गए। उन्हें इस रूप में देखकर राजभवन के अफसर भी हक्का बक्का रह गए।
सुब्रमणियन ने अपनी एक किताब में खुद लिखा है कि राज्यपाल तक उनकी नाराजगी की बात पहुंच जाए, इसके मद्देनजर जब वह उनके कक्ष की तरफ जाने को सीढ़ियां चढ़ रहे थे तो पैर पटकते हुए चल रहे थे। खैर उस दिन की बात आई-गई हो गई लेकिन कुछ दिन बाद गोल्फ क्लब के समारोह में बतौर मुख्य अतिथि मोतीलाल वोरा ने कहा कि उन्हें अपने राजभवन की सीढ़ियों का ख्याल है, इस वजह से आगे मुख्य सचिव के गोल्फ खेलने के टाइम उन्हें राजभवन आने को नहीं कहेंगे। ठहाकों के बीच लोगों को समझते देर नहीं लगी कि राज्यपाल ने ऐसा क्यों कहा।
‘पागल हैं, इनका भला कर दो’

चंद्रशेखर सड़क से लेकर सदन तक अपनी साफगोई के लिए याद किए जाते हैं। लेकिन एक और खासियत उनकी जिंदगी के आखिरी सालों में देखी गई थी। अलग-अलग राज्यों में कई ऐसे क्षेत्रीय नेता उनके साथ जुड़े हुए थे जो यह जानते थे कि चंद्रशेखर का व्यक्तिगत तौर पर राजनीतिक कद चाहे जितना ऊंचा हो लेकिन वह कोई पार्टी चलाकर किसी भी राज्य में कभी भी सत्ता में नहीं आ सकते हैं। फिर भी वे उनके साथ थे। चंद्रशेखर को भी यह अहसास था।
यह 2005 की बात है। उन्होंने मुलायम सिंह यादव को फोन लगाया। बोले, ‘कुछ पागल लोग हैं, जो आज भी मेरे साथ हैं। मैं इन्हें कुछ नहीं दे पाया, तुमसे अगर इनका कुछ अला-भला हो सके तो कर देना।’ मुलायम सिंह यादव के लिए कहा जाता है कि उनसे अगर कोई विरोधी भी सिफारिश करता है, तो वह उसकी बात नहीं टालते। मुलायम सिंह यादव ने पार्टी के अंदर चंद्रशेखर का आग्रह बताया। कहा कि एक लिस्ट तैयार कर लो। उनके 8-10 से ज्यादा लोग नहीं होंगे। उन्हें इस बार टिकट देना होगा। 2007 के चुनाव में ऐसा उन्होंने किया भी।